तुझ जैसा भी, मुझ जैसा भी, हर स्थिति में, जो जैसा भी, जब मन चाहे, मैं ढल जाऊं, अब जी करता, पानी बन जाऊं।। श्वेत भी मेरा, कृष्ण भी मेरा, हरा भी मेरा , लाल भी मेरा, जितने रंग हैं,सबमे रंग जाऊं अब जी करता, पानी बन जाऊं।। जीव जंतु हों , हों चाहे मानव देव पुरूष हों, हों चाहे दानव सबके जीवन का अंग बन जाऊं अब जी करता , पानी बन जाऊं।। ना कोई राजा, ना ही भिक्षुक, सबके लिए हूँ, जो हैं इच्छुक, ऐसा भाव ही, घर कर जाऊं, अब जी करता, पानी बन जाऊं।। तरल बनूँ मैं , ओस बनूँ मैं, जब तू चाहे , ठोस बनूँ मैं, मेरे तन में , तेरा मन पाऊँ, अब जी करता,पानी बन जाऊं।। नदियां , झरने और सरोवर, एक बूंद हो या हो समुन्दर, इन सबका , हो संगम जाऊं अब जी करता,पानी बन जाऊं।। गंगा, यमुना, सिंधु ही नहीं, नील, अमेजन और भी सभी, एक ही नहीं सब के संग गाऊं, अब जी करता पानी बन जाऊं।। -पंकज 'नयन' गौतम