Skip to main content

काश ! हार गया होता

  ( जीत की ऊंचाई पर
     आज अकेले बैठे हुए
     बीते लम्हों को याद कर
     खुद से ही  छिपाकर
     आज मैं सोचता हूं
     काश ! हार गया होता ।।

     जाने क्यों  खुश था
     उस लमहे को जीत कर
     उसकी हार तो जीत थी
     मेरी जीत को हार मान
     आज मैं सोचता हूं
     काश ! हार गया होता ।।

     आखिर क्या थी वजह
     उससे ही जीतने की
     जो खुद ही हार कर
     खुश था मेरी जीत पर
     तो आज मैं सोचता हूं
     काश ! हार गया होता ।।

     शायद जानता ना था
     या अनजान था जानकर
     खुद को साबित करने की
     उस गलती को मान कर
     आज मैं सोचता हूं
     काश ! हार गया होता ।।

     चलना है आगे अब
     इस अतीत से सीख कर
     हम दोनों की हार को
     अपनी जीत में बदल कर
     अब कभी नहीं सोचना
     काश ! हार गया होता ।।

            ~ Pankaj Nayan Gautam

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

गाँव

  गाँव' जब सुनते हैं ये शब्द तो क्या आते हैं ख़्याल, खुद में मगन वो नदियां पानी से भरे तालाब, हरी भरी पगडंडी पर मुस्काते हुए किसान । पर जाते हैं जब 'गांव' अस्तित्व से जूझती नदियां खाली से पड़े तालाब वीरान पड़ी गलियों पर सिसक रहा किसान।।   -पंकज नयन गौतम