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Physics वाला इश्क़

-मेरी आँखों की Radiations का
  तेरे System पर incident होना,
और Reflect होकर तेरे surface से,
मेरे heart field पर enter करना,
effect डाल Heartbeat में
Motion को accelerate करना ।

तेरे मेरे heart charge को,
Individually detect करना,
एक positive एक negative
Interaction से attract होना,
हम दोनों के बीच gravity का,
किसी Newton द्वारा पता करना ।

होने पर मुझे  hyperopia
तेरा यूँ convex lens  का बनना,
जब भी हुआ तुझे myopia
मेरा भी concave lens का बनना,
Telescope और  microscope बन
पास या दूर को measure करना ।

Radio wave की frequency से
तेरा बक-बक neutral बातें करना,
मैं visible range  का light हूँ
तेरा मेरे साथ modulation  करना,
Ferromagnetic  है अपने  hearts
साथ में many light years चलना ।

Wealth  भले हो  nano particles
But bond से nuclear power होना,
Cosmos में रहें या black hole में
Always एक-दूसरे से related रहना 
बस ऐसे ही unlimited power से
Physics वाला इश्क़ करना...............।

                 ~ Pankaj Nayan Gautam

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विंडो सीट

*विंडो सीट* आज फिर से छोटे बड़े सभी पेड़ बिना होड़ लगाए ना ही जीतने को पीछे की ओर दौड़े जा रहे हैं । आज फिर से दूर पहाड़ों के पीछे से लालिमा समेटे हुए नई उमंग के साथ सबको उज्ज्वल करने सूरज निकल रहा है। आज फिर से हरे-भरे खेतों पर चारदीवारी से बाहर स्वछन्द माहौल में दिन शुरू करने किसान टहल रहे हैं। आज फिर से खुले हुए आसमां में सीमाओं से बिना बंधे विभिन्न समूहों में एकता दर्शाते हुए पक्षी चहक रहे हैं। आज फिर से मन को आनंदित करती नव ऊर्जा को भरती अनवरत बिना थके प्रफुल्लित करती हुई पवन चल रही है। आज फिर से दो किनारों के बीच सुंदर नृत्य करती हुई शांत वातावरण में संगीत गुनगुनाती हुई तरंगणी बह रही है। आज फिर से बहुत दिनों बाद मैं निज ग्राम की ओर प्रस्थान कर रहा हूँ , , हां मैं विंडो सीट पर हूँ। हां मैं विंडो सीट पर हूँ।।       - *पंकज नयन गौतम*

नव ईस्वी सम्वत् की हार्दिक शुभकामनाएं

चलिए मान लेते हैं, कि नहीं बदलता मौसम, न ही कुछ नया हो जाता है , ना नए फूल खिलते, न ही भंवरा गुनगुनाता है, लेकिन यह दिन भी तो है अपनी ही ज़िन्दगी का मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।। गलत सोचते हैं हम कि वो नही मनाते हमारा तो उनका हम क्यों मनाएंगे खुद ही डरते हैं अपनी, हम संस्कृति भूल जाएंगे, अमिट सभ्यता अपनी तू व्यर्थ ही घबराता है, मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।। ऐसा करते हैं कि, उनका तरीका छोड़कर, हम अपना अपनाते हैं वो डिस्को में नाचें, हम भजनों को गाते हैं, इस दिन को मनाने से ग़र कुछ अच्छा आता है मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।। अच्छा ये सोचो, मिल जाता है बहाना सब से बातें करने का, साल भर की यादों को अपनी झोली में भरने का , बिना समय के होते भी जब समय मिल जाता है मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।।                            - पंकज 'नयन' गौतम

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  अब उम्मीद को भी, लगने लगी हैं हमसे ही उम्मीद । कि यदि हमने ही, उम्मीद पर से, उठा लिया उम्मीद, तो छोड़ ही देगा,  उम्मीद खुद से - खुद की ही उम्मीद। उम्मीद की ख़ातिर, बस थोड़ा सा कर लें क्या उम्मीद उम्मीद है शायद उम्मीद की भी बची रहे उम्मीद।। -पंकज नयन गौतम

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खाली इस वक्त में ढूँढ़ते हैं खुद को, लफ़्ज़ों को बांधकर बेसुध हो तन से, करता हूँ खयाल उस वीरान वक़्त में जब साथ की दरकार थी, असहाय से दरख्त कर दैव को पुकारता इन्तजार तो यूँ था जो नाकाबिल-ए-बर्दाश्त हो, सहसा कुछ इनायत हुई रंजिशें हुई ख़तम उसी को तो ढूंढ़ता जिसने किया ये था तब मुक़म्मल हुई अब आरजू मिला जो वक्त ढेर सा हुआ जो राब्ता खुद से तो पता चला वो मैं खुद ही था ।।              -पंकज नयन गौतम