कभी - कभी कुछ घटनाएं हमारे सामने ऐसी घटित हो जाती हैं,जो आजीवन अविस्मरणीय हो जाती हैं और ऐसी सीख दे जाती हैं जो हम सीखने की कोशिश करने पर भी नहीं सीख पाते।
उस दिन रविवार था , और हमेशा की तरह मेरी सुबह दोपहर को ही हुई थी। रूम में मैं अकेला ही था तो खाना बनाने की इच्छा नहीं हो रही थी। ज्यादा सो कर थक गया था तो थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं भोजनालय की ओर निकल पड़ा।
वहां पहुंचने पर पता चला कि अभी कुछ विलम्ब है । मुझे थोड़ी देर बाद आने को कहा गया , लेकिन आलसी मनुष्य होने का कर्तव्य निर्वहन करते हुए मैं वहीं बाहर रखी कुर्सी पर आराम से बैठ गया और इंतजार करना ज्यादा उचित समझा। और अलसाई हुई आंखों से इधर-उधर देख ही रहा था कि सामने से एक वृद्ध विकलांग भिखारी जो ठीक से चल भी नहीं पा रहा था एक लाठी के सहारे धीरे धीरे इसी भोजनालय की ओर आ रहा था तब मेरा कोई विशेष ध्यान उस पर नहीं गया था। पास आया तो मैंने देखा कि उसके पास एक पैकेट बिस्किट थी और ऐसा लग रहा था कि वह अभी तक भूखा है कुछ नहीं खाया है। वह अपनी लाचार आंखों से उस भोजनालय की ओर देखने लगा। मैं ज्यादा प्रभावित तो नहीं हुआ लेकिन जब उसने मुझसे बोला- " बेटा चाय मिल जाती तो मैं यह बिस्किट खा लेता "।उस कांपती हुई आवाज को सुनकर या सच कहूँ तो '₹5 की ही तो बात है' सोच कर मैंने उसके लिए एक कप चाय मंगवाई । मैंने उसे कुर्सी में बैठने के लिए कहा लेकिन वह कुर्सी में बैठने के लिए सक्षम नहीं था। वह वही जमीन पर बैठ गया, मैंने उसके सामने चाय रखी उसने अपनी जेब से बिस्किट का पैकेट निकाला और सकुचाते हुए कंपकपाती आवाज में मुझसे बोला -"बेटा, इसे खोल दो"। उसकी उंगलियों में इतना भी जोर नहीं बचा था कि वह पैकेट खोल सके मैंने उसका पैकेट खोला और उसे दिया।
वह जैसे ही पैकेट से एक बिस्किट निकाल कर चाय में डुबोकर खाने लगा, उसके बगल से एक छोटा बच्चा अपनी मां के साथ निकला और उस वृद्ध को देखने लगा। उस वृद्ध ने उस बच्चे को बुलाया और अपनी बिस्किट की पैकेट उसके हाथों में बच्चे की मां के मना करने के बाद भी रख दी और कांपते हुए हांथों से उसके गालों को सहलाकर करुणामयी आंखों से मुस्कुरा दिया। वह निर्बोध बालक तो वहां से चला गया लेकिन यह सब देखकर मैं निःशब्द रह गया। मैं विवश हो गया सोचने के लिए कि उसने बिस्किट नही उस दिन का अपना भोजन कैसे मुस्कुराते हुए इतनी सहजता से दे दिया।
जबकि आगे कोई निश्चित नहीं कि उसे भोजन मिलता है या नहीं। उसने उस समय अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया उसके लिए यह ₹5 की बात नहीं थी। पढ़ा और सुना तो बहुत था लेकिन उस दिन मैंने अपने सामने यह घटना देखी । इस 'धनवान भिखारी' ने मन को झकझोर कर रख दिया। वह चाय पीकर उठने की कोशिश करने लगा लेकिन नही उठ पा रहा था मैंने उसे उठाया और उसकी लाठी पकड़ाई। वह जाते जाते बोला -" तेरे जैसे लड़के तो ,,,,,,,,,,,,हंस कर निकल जाते हैं बहुत हुआ तो अफसोस जता कर निकल जाते हैं लेकिन,,,,,,,लेकिन,,,, खुश रहो" और वह धीरे-धीरे चलता हुआ आगे निकल गया लेकिन बहुत सारे विचारों को मेरे मन में छोड़ गया।
मुझे इस बात का कोई प्रभाव नही पड़ा कि मैंने उसकी मदद की और उसने आशीर्वचन बोले लेकिन उसकी वो 'धनवान छवि' मेरे मन में स्थायी हो चुकी थी।
Bhot khub mere dost...aese hi likhte raho
ReplyDeleteआप जैसे दोस्त पढ़ते रहेंगे तो हम लिखते ही रहेंगे।😊😊
DeleteMst guru
ReplyDeleteअरे गुरुदेव,,,,,,,टोपरा भर थैंक्यू
Deleteआप की कहानी अच्छी सुंदर है आप की कहानी मेरे दिल को छू गई मेरे छोटे भाई उस बुजुर्ग की मदद करने के लिए दिल से आपको धन्यवाद
ReplyDeleteसब आपके ही तो संस्कार हैं भ्राते🙏🙏
Deleteअपने अनुभव को बहुत अच्छे से और बहुत सुंदर तरीके से व्यक्त किया है ।
ReplyDeleteकई बार अपनी बातें हम लोगो तक नहीं पहुंचा पाते लेकिन अपने अनुभव को लोगो तक जरूर शेयर करना चाहिए ।
I'm proud that you are my younger brother. 😊😊
आखिर छोटा भाई तो आपका ही हूँ,,,,,,,,,,😊😊🌷🌷❤❤
Deleteशीर्षक को स्पर्श करती हुई स्मृति !! सिर्फ अंदाजा लगाया था , कि कंटेन्ट ऐसा ही होगा पर इतना मर्मस्पर्शी और झकझोरने वाला ..!!
ReplyDelete🙏
आपने दिल से पढ़ा
Delete100% attention
😊😊🙏🙏❤❤
Adbhut,,
ReplyDelete🙏🙏❤
Deleteसहज और सरल ढंग से अभिव्यक्त करना इस तरह की कहानियों का। यह आपमें एक अद्भुत क्षमता और कला का प्रतीक है। और हम आपसे प्रतिबद्ध लेखन का आग्रह करते हैं। 💝💝💝 being a friend I proud of you
ReplyDeleteबस आपके ही फीडबैक तो हमारे शरीर में ऊर्जा संचालित करते हैं और हमें मानसिक रूप से मजबूत बनाते हैं आप यूं ही पढ़ते रहिए और हम अपना विचार इसी तरह व्यक्त करते रहेंगे ।
DeleteLove u bro❤
Bahut mst Bhai
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद प्रिय मित्र❤
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