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अधिकार



मधुमक्खियां

मास के एक पक्ष भर

दूसरे पक्ष के लिए

भटकतीं पुष्प-पुष्प पर

रसों को संजोह कर 

कर्तव्य पालते हुए

मधु बनाती हैं।


बारी अब अधिकार की

जो जीविका निमित्त थी

तब दुष्ट मानव ने

उनको ही वंचित कर

सारा कोष शून्य कर दिया

यहीं तलक रुके नहीं

कल कर दिए सभा गठित

जिसमे विषय यही बना

कि ''मधुमक्खियों के कोष में

 क्या उनका अधिकार न था''

         -पंकज नयन गौतम





Comments

  1. Replies
    1. शानदार जबरदस्त जिंदावाद 👍bro

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  गाँव' जब सुनते हैं ये शब्द तो क्या आते हैं ख़्याल, खुद में मगन वो नदियां पानी से भरे तालाब, हरी भरी पगडंडी पर मुस्काते हुए किसान । पर जाते हैं जब 'गांव' अस्तित्व से जूझती नदियां खाली से पड़े तालाब वीरान पड़ी गलियों पर सिसक रहा किसान।।   -पंकज नयन गौतम