मधुमक्खियां
मास के एक पक्ष भर
दूसरे पक्ष के लिए
भटकतीं पुष्प-पुष्प पर
रसों को संजोह कर
कर्तव्य पालते हुए
मधु बनाती हैं।
बारी अब अधिकार की
जो जीविका निमित्त थी
तब दुष्ट मानव ने
उनको ही वंचित कर
सारा कोष शून्य कर दिया
यहीं तलक रुके नहीं
कल कर दिए सभा गठित
जिसमे विषय यही बना
कि ''मधुमक्खियों के कोष में
क्या उनका अधिकार न था''
-पंकज नयन गौतम
Beautiful ��
ReplyDeleteशानदार जबरदस्त जिंदावाद 👍bro
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