Skip to main content

वक़्त

बेवक़्त ही चल पड़ा था उम्मीदों पर अपने,,,,
और वक्त ने हक़ीक़त से रूबरू करा दिया।।
@imgautam_pn

Comments

Popular posts from this blog

दो पक्षी

 - वृक्ष की डालियों पर, मनमोहक दृश्य पक्षियों का, शोर, उनका कलरव व स्वच्छंदता, देखती हुई बंद कक्ष के झरोखों से  किसी कल्पना लोक में थी प्रेमिका। हतप्रभ थी वह इस बात पर, कि क्यों नहीं हो पा रहा निश्चय उन पक्षियों के सभी जोड़ों में, उनके स्त्रीत्व व पुरुषत्व का । उसके स्वयं के अनुभव ऐसे तो बिल्कुल न थे चूंकि जरूरी है प्रमाण समाज का ।। उसे फिर तनिक असहज लगा, अनेक पक्षियों का झुंड था क्या नहीं इज्जत कोई उनके समाज की, क्यों नहीं आया कोई पर उनके कुतरने, स्वतंत्र एवं प्रेम से उड़ते हुए पक्षियों का। वे उड़ते जा रहे सुदूर आकाश में, प्रसन्नता से युक्त उनकी चहचहाहट, प्रेम का तो अर्थ होता है यही कल्पना मात्र से मुस्कुरा रही वह प्रेमिका। हालांकि उसके स्वयं के साथ के अनुभव ऐसे तो बिल्कुल न थे पर उतरना तो काम है उसके समाज का ।। उन्मुक्त से होने लगे विचार उसके, भय युक्त होकर भी लगी वह मुक्त सी, उगेंगे पंख एक दिन फिर कभी, उड़ जाएंगे गगन के उस पार तक, और हाथ में होगा हाथ उसके 'साथ' का। फिर अचानक गिर पड़ा उसका महल, बन ही रहा था जो उसके विचार में, कुछ लोग पास आते दिखे उस वृक्ष के, कुछ अस्त्र हाथो...

आलिंगन

  सुबह की धूप सा इश्क़ तेरा और ओस की बूंदों सा मैं आलिंगन की अंतिम परिणति मिल जाऊँ बस तुझमे मैं ।।        -पंकज नयन गौतम