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वक़्त

बेवक़्त ही चल पड़ा था उम्मीदों पर अपने,,,,
और वक्त ने हक़ीक़त से रूबरू करा दिया।।
@imgautam_pn

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Physics वाला इश्क़

- मेरी आँखों की Radiations का   तेरे System पर incident होना, और Reflect होकर तेरे surface से, मेरे heart field पर enter करना, effect डाल Heartbeat में Motion को accelerate करना । तेरे मेरे heart charge को, Individually detect करना, एक positive एक negative Interaction से attract होना, हम दोनों के बीच gravity का, किसी Newton द्वारा पता करना । होने पर मुझे   hyperopia तेरा यूँ convex lens  का बनना, जब भी हुआ तुझे myopia मेरा भी concave lens का बनना, Telescope और   microscope बन पास या दूर को measure करना । Radio wave की frequency से तेरा बक-बक neutral बातें करना, मैं visible range  का light हूँ तेरा मेरे साथ modulation  करना, Ferromagnetic  है अपने   hearts साथ में many light years चलना । Wealth  भले हो   nano particles But bond से nuclear power होना, Cosmos में रहें या black hole में Always एक-दूसरे से related रहना  बस ऐसे ही unlimited power से...

काश ! हार गया होता

  ( जीत की ऊंचाई पर      आज अकेले बैठे हुए      बीते लम्हों को याद कर      खुद से ही  छिपाकर      आज मैं सोचता हूं      काश ! हार गया होता ।।      जाने क्यों  खुश था      उस लमहे को जीत कर      उसकी हार तो जीत थी      मेरी जीत को हार मान      आज मैं सोचता हूं      काश ! हार गया होता ।।      आखिर क्या थी वजह      उससे ही जीतने की      जो खुद ही हार कर      खुश था मेरी जीत पर      तो आज मैं सोचता हूं      काश ! हार गया होता ।।      शायद जानता ना था      या अनजान था जानकर      खुद को साबित करने की      उस गलती को मान कर      आज मैं सोचता हूं      काश ! हार गया होता ।।      चलना है आगे अब ...

राब्ता खुद से

खाली इस वक्त में ढूँढ़ते हैं खुद को, लफ़्ज़ों को बांधकर बेसुध हो तन से, करता हूँ खयाल उस वीरान वक़्त में जब साथ की दरकार थी, असहाय से दरख्त कर दैव को पुकारता इन्तजार तो यूँ था जो नाकाबिल-ए-बर्दाश्त हो, सहसा कुछ इनायत हुई रंजिशें हुई ख़तम उसी को तो ढूंढ़ता जिसने किया ये था तब मुक़म्मल हुई अब आरजू मिला जो वक्त ढेर सा हुआ जो राब्ता खुद से तो पता चला वो मैं खुद ही था ।।              -पंकज नयन गौतम

अधिकार

मधुमक्खियां मास के एक पक्ष भर दूसरे पक्ष के लिए भटकतीं पुष्प-पुष्प पर रसों को संजोह कर  कर्तव्य पालते हुए मधु बनाती हैं। बारी अब अधिकार की जो जीविका निमित्त थी तब दुष्ट मानव ने उनको ही वंचित कर सारा कोष शून्य कर दिया यहीं तलक रुके नहीं कल कर दिए सभा गठित जिसमे विषय यही बना कि ''मधुमक्खियों के कोष में  क्या उनका अधिकार न था''          -पंकज नयन गौतम

नव ईस्वी सम्वत् की हार्दिक शुभकामनाएं

चलिए मान लेते हैं, कि नहीं बदलता मौसम, न ही कुछ नया हो जाता है , ना नए फूल खिलते, न ही भंवरा गुनगुनाता है, लेकिन यह दिन भी तो है अपनी ही ज़िन्दगी का मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।। गलत सोचते हैं हम कि वो नही मनाते हमारा तो उनका हम क्यों मनाएंगे खुद ही डरते हैं अपनी, हम संस्कृति भूल जाएंगे, अमिट सभ्यता अपनी तू व्यर्थ ही घबराता है, मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।। ऐसा करते हैं कि, उनका तरीका छोड़कर, हम अपना अपनाते हैं वो डिस्को में नाचें, हम भजनों को गाते हैं, इस दिन को मनाने से ग़र कुछ अच्छा आता है मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।। अच्छा ये सोचो, मिल जाता है बहाना सब से बातें करने का, साल भर की यादों को अपनी झोली में भरने का , बिना समय के होते भी जब समय मिल जाता है मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।।                            - पंकज 'नयन' गौतम