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राब्ता खुद से



खाली इस वक्त में
ढूँढ़ते हैं खुद को,
लफ़्ज़ों को बांधकर
बेसुध हो तन से,
करता हूँ खयाल
उस वीरान वक़्त में
जब साथ की दरकार थी,
असहाय से दरख्त कर
दैव को पुकारता
इन्तजार तो यूँ था
जो नाकाबिल-ए-बर्दाश्त हो,
सहसा कुछ इनायत हुई
रंजिशें हुई ख़तम
उसी को तो ढूंढ़ता
जिसने किया ये था तब
मुक़म्मल हुई अब आरजू
मिला जो वक्त ढेर सा
हुआ जो राब्ता खुद से तो
पता चला वो मैं खुद ही था ।।

             -पंकज नयन गौतम

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