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Quote -2

उन बेपरवाह हवाओं पर इल्जाम किस मुँह से लगाएं साहब,
 रेगिस्तान की रेतों पर तस्वीर तो हमने ही बनाई थी।

-@imgautam_pn

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अधिकार

मधुमक्खियां मास के एक पक्ष भर दूसरे पक्ष के लिए भटकतीं पुष्प-पुष्प पर रसों को संजोह कर  कर्तव्य पालते हुए मधु बनाती हैं। बारी अब अधिकार की जो जीविका निमित्त थी तब दुष्ट मानव ने उनको ही वंचित कर सारा कोष शून्य कर दिया यहीं तलक रुके नहीं कल कर दिए सभा गठित जिसमे विषय यही बना कि ''मधुमक्खियों के कोष में  क्या उनका अधिकार न था''          -पंकज नयन गौतम

दो पक्षी

 - वृक्ष की डालियों पर, मनमोहक दृश्य पक्षियों का, शोर, उनका कलरव व स्वच्छंदता, देखती हुई बंद कक्ष के झरोखों से  किसी कल्पना लोक में थी प्रेमिका। हतप्रभ थी वह इस बात पर, कि क्यों नहीं हो पा रहा निश्चय उन पक्षियों के सभी जोड़ों में, उनके स्त्रीत्व व पुरुषत्व का । उसके स्वयं के अनुभव ऐसे तो बिल्कुल न थे चूंकि जरूरी है प्रमाण समाज का ।। उसे फिर तनिक असहज लगा, अनेक पक्षियों का झुंड था क्या नहीं इज्जत कोई उनके समाज की, क्यों नहीं आया कोई पर उनके कुतरने, स्वतंत्र एवं प्रेम से उड़ते हुए पक्षियों का। वे उड़ते जा रहे सुदूर आकाश में, प्रसन्नता से युक्त उनकी चहचहाहट, प्रेम का तो अर्थ होता है यही कल्पना मात्र से मुस्कुरा रही वह प्रेमिका। हालांकि उसके स्वयं के साथ के अनुभव ऐसे तो बिल्कुल न थे पर उतरना तो काम है उसके समाज का ।। उन्मुक्त से होने लगे विचार उसके, भय युक्त होकर भी लगी वह मुक्त सी, उगेंगे पंख एक दिन फिर कभी, उड़ जाएंगे गगन के उस पार तक, और हाथ में होगा हाथ उसके 'साथ' का। फिर अचानक गिर पड़ा उसका महल, बन ही रहा था जो उसके विचार में, कुछ लोग पास आते दिखे उस वृक्ष के, कुछ अस्त्र हाथो...

धनवान भिखारी

    कभी - कभी कुछ घटनाएं  हमारे सामने ऐसी घटित हो जाती हैं,जो आजीवन अविस्मरणीय हो जाती हैं और ऐसी सीख दे जाती हैं जो हम सीखने की कोशिश करने पर भी नहीं सीख पाते।        उस दिन रविवार था , और हमेशा की तरह मेरी सुबह दोपहर को ही हुई थी। रूम में मैं अकेला ही था तो खाना बनाने की इच्छा नहीं हो रही थी। ज्यादा सो कर थक गया था तो थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं भोजनालय की ओर निकल पड़ा।         वहां पहुंचने पर पता चला कि अभी कुछ विलम्ब है । मुझे थोड़ी देर बाद आने को कहा गया , लेकिन आलसी मनुष्य होने का कर्तव्य निर्वहन करते हुए मैं वहीं बाहर रखी कुर्सी पर आराम से बैठ गया और इंतजार करना ज्यादा उचित समझा। और अलसाई हुई आंखों से इधर-उधर देख ही रहा था  कि सामने से एक वृद्ध विकलांग भिखारी  जो ठीक से चल भी नहीं पा रहा था एक लाठी के सहारे धीरे धीरे इसी भोजनालय की ओर आ रहा था तब मेरा कोई विशेष ध्यान उस पर नहीं गया था। पास आया तो मैंने देखा कि उसके पास एक पैकेट बिस्किट थी और ऐसा लग रहा था कि वह अभी तक भूखा है कुछ नहीं खाया है। वह अपनी लाचार...