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पानी बन जाऊं


तुझ जैसा भी, मुझ जैसा भी,
हर स्थिति में, जो जैसा भी,
जब मन चाहे, मैं ढल जाऊं,
अब जी करता, पानी बन जाऊं।।

श्वेत भी मेरा,  कृष्ण भी मेरा,
हरा भी मेरा , लाल भी मेरा,
जितने रंग हैं,सबमे रंग जाऊं
अब जी करता, पानी बन जाऊं।।

जीव जंतु हों , हों चाहे मानव 
देव पुरूष हों, हों चाहे दानव 
सबके जीवन का अंग बन जाऊं
अब जी करता , पानी बन जाऊं।।

ना कोई राजा, ना ही भिक्षुक,
सबके लिए हूँ, जो हैं इच्छुक,
ऐसा भाव ही, घर कर जाऊं,
अब जी करता, पानी बन जाऊं।।

तरल बनूँ मैं , ओस बनूँ मैं,
जब तू चाहे , ठोस बनूँ मैं,
मेरे तन में , तेरा मन पाऊँ,
अब जी करता,पानी बन जाऊं।।

नदियां , झरने और सरोवर,
एक बूंद हो या हो समुन्दर,
इन सबका , हो संगम जाऊं
अब जी करता,पानी बन जाऊं।।

गंगा, यमुना, सिंधु ही नहीं,
नील, अमेजन और भी सभी,
एक ही नहीं सब के संग गाऊं,
अब जी करता पानी बन जाऊं।।

                    -पंकज 'नयन' गौतम

Comments

  1. वाकई अन्तरात्मा कै प्रफुल्लित करने वाली कविता

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    1. सहृदय धन्यवाद त्रिपाठी जी

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  2. This comment has been removed by the author.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद,,, लेकिन हमारे नाम से टिप्पणी कैसे ??

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    3. पानी का चरित्र ही है हर मौसम, स्थिति, समय पर अपनी व्यापकता.को सदैव एक व्योम में ढाल देना ..!! जीवन के अनछुए पहलुओं से इसे स्पर्श करना कितना रोमांचक है ? यह आपकी कविता का हर एक लफ्ज कहता है!!

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    4. भावनाओं को व्यक्त करने का उद्देश्य आप जैसे पाठकों से ही सफल है तिवारी जी,,,बहुत बहुत धन्यवाद😊

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  3. हमारे ही नाम से जो टिप्पणी आ रही है वो हमारे भ्राता विनीत द्विवेदी जी की है,,,, कविता को आत्मसात कर लिया है उन्होंने,,,, बहुत बहुत धन्यवाद 🌷

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  4. क्या बात है कवि साहब मनभावक कविता है|

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  5. बहुत सुंदर कविता बिल्कुल कविता के लेखक जैसी।

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    1. यह तो हमारे प्रति आपकी सुदृष्टि है। ❤❤

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