कैसे करूँ
अलंकृत तुम्हें
मैं किसी
उपमान से,
प्रेक्षणीय
उस परिप्रेक्ष्य में
कुछ सूझा नहीं,
जैसे हेतु मेरे
प्राप्तव्य तुम मात्र हो ।
कहना पड़े फिर भी मुझे
तो मैं तुम्हे
प्रत्यक्ष दर्पण के बिठा
परिचय करा
तुमको तुम्हीं से,
बोलता यह
कि मेरे
जीवन के काव्य की
एक ही तुम पात्र हो ।।
- पंकज नयन गौतम
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