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गाँव

 


गाँव'

जब सुनते हैं ये शब्द

तो क्या आते हैं ख़्याल,

खुद में मगन वो नदियां

पानी से भरे तालाब,

हरी भरी पगडंडी पर

मुस्काते हुए किसान ।


पर जाते हैं जब 'गांव'

अस्तित्व से जूझती नदियां

खाली से पड़े तालाब

वीरान पड़ी गलियों पर

सिसक रहा किसान।।


  -पंकज नयन गौतम

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राब्ता खुद से

खाली इस वक्त में ढूँढ़ते हैं खुद को, लफ़्ज़ों को बांधकर बेसुध हो तन से, करता हूँ खयाल उस वीरान वक़्त में जब साथ की दरकार थी, असहाय से दरख्त कर दैव को पुकारता इन्तजार तो यूँ था जो नाकाबिल-ए-बर्दाश्त हो, सहसा कुछ इनायत हुई रंजिशें हुई ख़तम उसी को तो ढूंढ़ता जिसने किया ये था तब मुक़म्मल हुई अब आरजू मिला जो वक्त ढेर सा हुआ जो राब्ता खुद से तो पता चला वो मैं खुद ही था ।।              -पंकज नयन गौतम

परिवर्तन

  मेरे दुःख और पीड़ा की तीव्रता, तब तुमको पुकारती आवाज, सब बिल्कुल वैसी ही हैं । जो कुछ भी बदल गया अब वो हैं तुम्हारी संवेदनायें , तब तो अनुभव करती थीं क्षणिक भर का भी परिवर्तन, अब तो सब रिक्त सा है, तुम्हारा मेरे प्रति अंतर्मन ।।          - पंकज नयन गौतम

We know that.....

I know that I know me but you don't know me, And you know that you know me But I don't know me. Now I know that I know me Better than you. You know me better than me. I know you better than you But you know that You know yourself better than me. Conclusion-: We know each other , Better than ourselves. Welcome!