( जीत की ऊंचाई पर आज अकेले बैठे हुए बीते लम्हों को याद कर खुद से ही छिपाकर आज मैं सोचता हूं काश ! हार गया होता ।। जाने क्यों खुश था उस लमहे को जीत कर उसकी हार तो जीत थी मेरी जीत को हार मान आज मैं सोचता हूं काश ! हार गया होता ।। आखिर क्या थी वजह उससे ही जीतने की जो खुद ही हार कर खुश था मेरी जीत पर तो आज मैं सोचता हूं काश ! हार गया होता ।। शायद जानता ना था या अनजान था जानकर खुद को साबित करने की उस गलती को मान कर आज मैं सोचता हूं काश ! हार गया होता ।। चलना है आगे अब ...
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