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आशियाँ

 

तिनकों से बुना था जो आशियाँ ,

उसे छोंड़  दूर दाना चुगते हैं ।

यहां हर पग जाल बहेलिये का,

चल छोड़ परिंदे घर चलते हैं ।।

             -पंकज नयन गौतम

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आश्रय

- आश्रय रात का अंधेरा ओझल कर एक दुनिया को, जगा सा देता है उस जहां को जहां दिन के उजाले में बस अभिनय हो पाता है । सुनसान तब समय, वरीयता देता है, छोटी सी आवाज को स्मृतियों को, अपने मौलिक विचार को, सुलझती हैं कई ध्वनियां उन उलझी खामोशियों से । रात का अंधेरा देता है आश्रय, अनियोजित मुस्कुराहट को, बहुप्रतीक्षित उस स्वतंत्रता को जहां निषिद्ध नहीं है बहना,  पुरुष के आंसुओं को ।।                          - पंकज नयन गौतम

राब्ता खुद से

खाली इस वक्त में ढूँढ़ते हैं खुद को, लफ़्ज़ों को बांधकर बेसुध हो तन से, करता हूँ खयाल उस वीरान वक़्त में जब साथ की दरकार थी, असहाय से दरख्त कर दैव को पुकारता इन्तजार तो यूँ था जो नाकाबिल-ए-बर्दाश्त हो, सहसा कुछ इनायत हुई रंजिशें हुई ख़तम उसी को तो ढूंढ़ता जिसने किया ये था तब मुक़म्मल हुई अब आरजू मिला जो वक्त ढेर सा हुआ जो राब्ता खुद से तो पता चला वो मैं खुद ही था ।।              -पंकज नयन गौतम