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आशियाँ

 

तिनकों से बुना था जो आशियाँ ,

उसे छोंड़  दूर दाना चुगते हैं ।

यहां हर पग जाल बहेलिये का,

चल छोड़ परिंदे घर चलते हैं ।।

             -पंकज नयन गौतम

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गाँव

  गाँव' जब सुनते हैं ये शब्द तो क्या आते हैं ख़्याल, खुद में मगन वो नदियां पानी से भरे तालाब, हरी भरी पगडंडी पर मुस्काते हुए किसान । पर जाते हैं जब 'गांव' अस्तित्व से जूझती नदियां खाली से पड़े तालाब वीरान पड़ी गलियों पर सिसक रहा किसान।।   -पंकज नयन गौतम