तिनकों से बुना था जो आशियाँ ,
उसे छोंड़ दूर दाना चुगते हैं ।
यहां हर पग जाल बहेलिये का,
चल छोड़ परिंदे घर चलते हैं ।।
-पंकज नयन गौतम
तिनकों से बुना था जो आशियाँ ,
उसे छोंड़ दूर दाना चुगते हैं ।
यहां हर पग जाल बहेलिये का,
चल छोड़ परिंदे घर चलते हैं ।।
-पंकज नयन गौतम
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