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पानी बन जाऊं

तुझ जैसा भी, मुझ जैसा भी, हर स्थिति में, जो जैसा भी, जब मन चाहे, मैं ढल जाऊं, अब जी करता, पानी बन जाऊं।। श्वेत भी मेरा,  कृष्ण भी मेरा, हरा भी मेरा , लाल भी मेरा, जितने रंग हैं,सबमे रंग जाऊं अब जी करता, पानी बन जाऊं।। जीव जंतु हों ,  हों  चाहे मानव  देव पुरूष हों,  हों  चाहे दानव  सबके जीवन का अंग बन जाऊं अब जी करता , पानी बन जाऊं।। ना कोई राजा, ना ही भिक्षुक, सबके लिए हूँ, जो हैं इच्छुक, ऐसा भाव ही, घर कर जाऊं, अब जी करता, पानी बन जाऊं।। तरल बनूँ मैं , ओस बनूँ मैं, जब तू चाहे , ठोस बनूँ मैं, मेरे तन में , तेरा मन पाऊँ, अब जी करता,पानी बन जाऊं।। नदियां , झरने और सरोवर, एक बूंद हो या हो समुन्दर, इन सबका , हो संगम जाऊं अब जी करता,पानी बन जाऊं।। गंगा, यमुना, सिंधु ही नहीं, नील, अमेजन और भी सभी, एक ही नहीं सब के संग गाऊं, अब जी करता पानी बन जाऊं।।                     -पंकज 'नयन' गौतम

''माँ-बाप मुस्कुराएं तो,,,,,,"

- स्वर्ग से भी ऊंची वो मन्जिल मिल जाती हैं ख्वाहिशों के बागों की सब कलियां खिल जाती हैं,, खुश होते हैं तब हम दिल की गहराइयों से, माँ-बाप मुस्कुराएं तो सारी कायनात मुस्कुराती है।१। ये असीमित गगन बस यही कह रहा है, स्थिर समुन्दर भी हमसे यही कह रहा है, सृष्टि का तो नियम बस यही चल रहा है, अविरल नदियां औए हवाएं यही गुनगुनाती हैं,,,,, माँ-बाप मुस्कुराएं तो सारी कायनात मुस्कुराती है।२। न जरूरत मुझे किसी अन्य भक्ति से है, इस निस्वार्थ मन को न किसी शक्ति से है, न परम् ज्ञान और  न मोक्ष , मुक्ति से है, ये सब भी मिलकर बस यही गीत गाती हैं, माँ-बाप मुस्कुराएं तो सारी कायनात मुस्कुराती है।३। श्रद्धा,पूजा, तप ,वन्दन सब तो इनमें ही है, हम भी  ढूँढ़ते जो भगवन  वो इनमें ही है, शास्त्र, ग्रन्थ जितने सनातन सब इनमें ही है,  मन्त्र, वैदिक ऋचाएं सब यही धुन सुनाती हैं, माँ-बाप मुस्कुराएं तो सारी कायनात मुस्कुराती है।४। जिन्होंने मुझको 'लिखा' उनको मैं क्या लिखूं, अस्तित्व जिनसे है मेरा, उन्हें बयाँ क्या करूँ, सम्पूर्ण महाकाव्य हैं, चंद पंक्तियों में कह न सकूँ जब ...

घर याद आता है!

हाँ, मैं भी आया हूँ कहीं दूर अपनों से , सोंचकर कि वहीं मुलाकात होगी सपनों से, हाँ, आसान होता है यह ,मैनें माना भी था, मैं 'निर्दोष' इन सबसे अनजाना भी था अब जब भी वक्त कोई नया गीत गाता है, तब तब मुझे मेरा घर याद आता है । तब तब मुझे मेरा घर याद आता है । चुना वही कदम , चुनते हैं सब जिसे, चलकर इस रस्ते में, बना लेंगे अपना इसे, नज़र आईं खुशियां जब रूबरू न थे, भले ही चल पड़े मगर तब 'शुरू' न थे, जब भी मुझे वो 'पहल' ख्याल आता है, तब तब मुझे मेरा घर याद आता है। तब तब मुझे मेरा घर याद आता है । मिलता था जो भी खा लेते थे सब, 'नापसन्द' शब्द से ना वाकिफ़ थे तब, प्यार के साथ हमको तो मिलता भी था, भूख मिटने के साथ मन तो भरता भी था, यहां का खाना जब बिल्कुल न भाता है, तब तब मुझे मेरा घर याद आता है। तब तब मुझे मेरा घर याद आता है।  यहां अन्धकार का नामोनिशां ही नहीं,  हम ढूंढते थे जिसे है वही बस यहीं, तब नाचीज़ थी जो अब वो अनमोल है, दूर करते जिसे अब वो खुद गोल है,, अब जब जब यहां 'तम'* नज़र आता है, तब तब मुझे मेरा घर याद आता है। तब तब मुझे मेर...

उफ़्फ़! ये नींद

जब हम चाहते हैं , तब क्यों नहीं आती है ? करते हैं लाख कोशिशें, वो भी विफल हो जाती हैं। लेकिन, जब भी उसका मन हो हम रोक नहीं पाते, उफ़! क्या बताएं साहब, ये नींद बहुत सताती है । क्या समझते हो ? कि हम नहीं चाहते सुबह जागना, 'दूसरी दुनिया' वालों की तरह 'फिटनेस' को भागना, हमारी दुनिया भी किसी को समझ कहाँ आती है,,,, उफ़! क्या बताएं साहब, ये नींद बहुत सताती है । हाँ, हम भी उठे थे समझौता करके एक प्रातः काल, गए फिर 'दूसरी दुनिया' में बदलने अपनी चाल, अरे ये क्या,,,यहाँ तो दूसरी प्रजाति नज़र आती है उफ़! क्या बताएं साहब, ये नींद बहुत सताती है । देखते ही उनको लगा, कि हम भी जीत लेंगे ये 'जंग', 'बेटा तुझसे न हो पायेगा' ,ये कहने लगा  अंतरंग उस 'इतिहास' की कभी कभी याद आ जाती है। उफ़! क्या बताएं साहब, ये नींद बहुत सताती है । बीत चुके हैं अरसों अब, खुद को बदलते बदलते, अभी बस उतना ही बदले हैं, जितना 'मरते का न करते', अब जितनी भी आवाजें आती हैं,यही 'व्यंग्य' सुनाती हैं, उफ़! क्या बताएं साहब, ये नींद बहुत सताती है ।        ...

ज़िन्दगी

करना पड़ता है वो भी, जो नहीं चाहते हम कभी। बस इसी मज़बूरी का तो नाम ज़िन्दगी है। सफल होना मक़सद नही,असफल भी होते हैं हम, बस इसके लिए किया गया काम ज़िन्दगी है। अपना गांव छोड़े, घर वार छोड़े, पर याद संजोए हुए हैं,,, अब फिर लौट आने का इंतजाम ज़िन्दगी है। रख कर दिमाग अपने घर में, निकल जाते थे दोस्तों के साथ, बस वही 'अनमोल' सुबह और शाम ज़िन्दगी है। हंसना, रोना, खाना ,सोना सबमें कुछ 'अलग' ही मज़ा था । घर में थे तो इस 'सफर' के बारे में सोचना भी सज़ा था। बस इसी पल तक हम अनजान थे 'इस' ज़िन्दगी से, 'वो' सुकून से किया गया 'आराम' ज़िन्दगी है। अब निकले हैं अनजाने सफर पर, कुछ तय करके पैमाने, ये 'करना' है और ये 'नहीं करना' , लगे खुद को समझाने , जो 'किये'  और जो 'नहीं किये' सब बन गए ज़िन्दगी के 'किस्से'; अब जो भी हम हासिल करेंगे, वही मुक़ाम ज़िन्दगी है।

"अस्तित्व"

वो जब पूंछे हमसे कि किससे है मोहब्बत सबसे ज्यादा,,,, हमने बिना सोचे उनका नाम ले लिया । वो हमसे कुछ दूसरी ही उम्मीद किये हुए थे,,,,,, हमने भी मुस्कुराकर कह दिया-  'अरे नही' , "माँ-बाप" तो "अस्तित्व" हैं हमारे ।।

'वजह'

हम निकले थे अपनी मुस्कुराहटों को ढूंढने के लिए,,,,,   जितनी थीं भी ,वो भी पता नहीं, कहाँ गयीं,,,,,,,?           फिर,जब हम बन गए दूसरों के मुस्कुराने की वजह,,,,,,                बस यही वजह हमारे 'मुस्कुराने की वजह' बन गयी ।।।   ~@imgautam_pn

Quote -2

उन बेपरवाह हवाओं पर इल्जाम किस मुँह से लगाएं साहब,  रेगिस्तान की रेतों पर तस्वीर तो हमने ही बनाई थी। -@imgautam_pn

We know that.....

I know that I know me but you don't know me, And you know that you know me But I don't know me. Now I know that I know me Better than you. You know me better than me. I know you better than you But you know that You know yourself better than me. Conclusion-: We know each other , Better than ourselves. Welcome!