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तुम

   कैसे करूँ  अलंकृत तुम्हें मैं किसी उपमान से, प्रेक्षणीय उस परिप्रेक्ष्य में कुछ सूझा नहीं, जैसे हेतु मेरे प्राप्तव्य तुम मात्र हो । कहना पड़े फिर भी मुझे तो मैं तुम्हे प्रत्यक्ष दर्पण के बिठा परिचय करा तुमको तुम्हीं से, बोलता यह कि मेरे  जीवन के काव्य की एक ही तुम पात्र हो ।।                     - पंकज नयन गौतम

Physics वाला इश्क़

- मेरी आँखों की Radiations का   तेरे System पर incident होना, और Reflect होकर तेरे surface से, मेरे heart field पर enter करना, effect डाल Heartbeat में Motion को accelerate करना । तेरे मेरे heart charge को, Individually detect करना, एक positive एक negative Interaction से attract होना, हम दोनों के बीच gravity का, किसी Newton द्वारा पता करना । होने पर मुझे   hyperopia तेरा यूँ convex lens  का बनना, जब भी हुआ तुझे myopia मेरा भी concave lens का बनना, Telescope और   microscope बन पास या दूर को measure करना । Radio wave की frequency से तेरा बक-बक neutral बातें करना, मैं visible range  का light हूँ तेरा मेरे साथ modulation  करना, Ferromagnetic  है अपने   hearts साथ में many light years चलना । Wealth  भले हो   nano particles But bond से nuclear power होना, Cosmos में रहें या black hole में Always एक-दूसरे से related रहना  बस ऐसे ही unlimited power से...

काश ! हार गया होता

  ( जीत की ऊंचाई पर      आज अकेले बैठे हुए      बीते लम्हों को याद कर      खुद से ही  छिपाकर      आज मैं सोचता हूं      काश ! हार गया होता ।।      जाने क्यों  खुश था      उस लमहे को जीत कर      उसकी हार तो जीत थी      मेरी जीत को हार मान      आज मैं सोचता हूं      काश ! हार गया होता ।।      आखिर क्या थी वजह      उससे ही जीतने की      जो खुद ही हार कर      खुश था मेरी जीत पर      तो आज मैं सोचता हूं      काश ! हार गया होता ।।      शायद जानता ना था      या अनजान था जानकर      खुद को साबित करने की      उस गलती को मान कर      आज मैं सोचता हूं      काश ! हार गया होता ।।      चलना है आगे अब ...

तू सत्य का सामना कर

बस छोड़ दे संसार को, न सोच तू व्यवहार को, ना मोह के विचार को, बस एक ही उपासना कर, तू सत्य का सामना कर ।। जो हो चुका, वो हो चुका, जो हो रहा, वह हो रहा, जो होना है, वो होना है, इनसे व्यथित खुद को ना कर, तू सत्य का सामना कर ।। 'खुशी', बस एक शब्द मात्र, 'दुःख' भी है एक शब्द मात्र, अभिनय करते तो नाट्यपात्र, रोया ना कर, तू हँसा ना कर, तू सत्य का सामना कर ।। तू बन जा अब तो उदासीन, भव बैठक से हो निरासीन, रहना होगा अब शून्यलीन, अब बस यही आराधना कर, तू सत्य का सामना कर ।। सत्य क्या है? , 'कुछ नहीं' ये अनंत है ये शून्य ही, यह तो स्वयं भगवान ही, अन्यत्र अब जाया न कर, तू सत्य का सामना कर ।।                      - पंकज नयन गौतम

विंडो सीट

*विंडो सीट* आज फिर से छोटे बड़े सभी पेड़ बिना होड़ लगाए ना ही जीतने को पीछे की ओर दौड़े जा रहे हैं । आज फिर से दूर पहाड़ों के पीछे से लालिमा समेटे हुए नई उमंग के साथ सबको उज्ज्वल करने सूरज निकल रहा है। आज फिर से हरे-भरे खेतों पर चारदीवारी से बाहर स्वछन्द माहौल में दिन शुरू करने किसान टहल रहे हैं। आज फिर से खुले हुए आसमां में सीमाओं से बिना बंधे विभिन्न समूहों में एकता दर्शाते हुए पक्षी चहक रहे हैं। आज फिर से मन को आनंदित करती नव ऊर्जा को भरती अनवरत बिना थके प्रफुल्लित करती हुई पवन चल रही है। आज फिर से दो किनारों के बीच सुंदर नृत्य करती हुई शांत वातावरण में संगीत गुनगुनाती हुई तरंगणी बह रही है। आज फिर से बहुत दिनों बाद मैं निज ग्राम की ओर प्रस्थान कर रहा हूँ , , हां मैं विंडो सीट पर हूँ। हां मैं विंडो सीट पर हूँ।।       - *पंकज नयन गौतम*

नव ईस्वी सम्वत् की हार्दिक शुभकामनाएं

चलिए मान लेते हैं, कि नहीं बदलता मौसम, न ही कुछ नया हो जाता है , ना नए फूल खिलते, न ही भंवरा गुनगुनाता है, लेकिन यह दिन भी तो है अपनी ही ज़िन्दगी का मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।। गलत सोचते हैं हम कि वो नही मनाते हमारा तो उनका हम क्यों मनाएंगे खुद ही डरते हैं अपनी, हम संस्कृति भूल जाएंगे, अमिट सभ्यता अपनी तू व्यर्थ ही घबराता है, मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।। ऐसा करते हैं कि, उनका तरीका छोड़कर, हम अपना अपनाते हैं वो डिस्को में नाचें, हम भजनों को गाते हैं, इस दिन को मनाने से ग़र कुछ अच्छा आता है मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।। अच्छा ये सोचो, मिल जाता है बहाना सब से बातें करने का, साल भर की यादों को अपनी झोली में भरने का , बिना समय के होते भी जब समय मिल जाता है मना लेते हैं यार,आखिर, मनाने में क्या जाता है।।                            - पंकज 'नयन' गौतम

अरे यार! समय नहीं है

ये है क्या, जो किसी के पास नहीं है, पास होते हुए भी यह, पता नहीं क्यों नहीं है हमेशा जिसे देखो तब, अरे यार समय नही है । यदि समय नही है तो कैसे कर लेते हो कुछ, इस चीज़ के लिए नहीं तो किसके लिए बहुत कुछ, नही बताया उसने क्योंकि अरे यार समय नहीं है। समय भी कैसा है ये दूसरों के लिए तो है, जिनसे है मात्र दिखावा, ऐसा नहीं कि और नहीं है बात अपनों की हो तो, अरे यार समय नहीं है। है किसके पास कहीं ऐसा तो नही है कि इसका वजूद ही नहीं, लेकिन ऐसा तो नहीं है, ढूंढ़ेंगे हम इसे लेकिन, अरे यार समय नहीं है।  चलो ठीक है, मान लेते हैं कि नहीं है, कुछ तुम निकालो कुछ मैं, हां, ये बिल्कुल सही है इतना भी न हुआ क्योंकि अरे यार समय नहीं है। ये समय है बस इसे पहचान लो तुम निकालोगे जरूर मेरे लिए थोड़ा जल्दी, जान तो तुम कहीं मैं भी न बोल दूँ कि अरे यार समय नहीं है।               -पंकज 'नयन' गौतम

धनवान भिखारी

    कभी - कभी कुछ घटनाएं  हमारे सामने ऐसी घटित हो जाती हैं,जो आजीवन अविस्मरणीय हो जाती हैं और ऐसी सीख दे जाती हैं जो हम सीखने की कोशिश करने पर भी नहीं सीख पाते।        उस दिन रविवार था , और हमेशा की तरह मेरी सुबह दोपहर को ही हुई थी। रूम में मैं अकेला ही था तो खाना बनाने की इच्छा नहीं हो रही थी। ज्यादा सो कर थक गया था तो थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं भोजनालय की ओर निकल पड़ा।         वहां पहुंचने पर पता चला कि अभी कुछ विलम्ब है । मुझे थोड़ी देर बाद आने को कहा गया , लेकिन आलसी मनुष्य होने का कर्तव्य निर्वहन करते हुए मैं वहीं बाहर रखी कुर्सी पर आराम से बैठ गया और इंतजार करना ज्यादा उचित समझा। और अलसाई हुई आंखों से इधर-उधर देख ही रहा था  कि सामने से एक वृद्ध विकलांग भिखारी  जो ठीक से चल भी नहीं पा रहा था एक लाठी के सहारे धीरे धीरे इसी भोजनालय की ओर आ रहा था तब मेरा कोई विशेष ध्यान उस पर नहीं गया था। पास आया तो मैंने देखा कि उसके पास एक पैकेट बिस्किट थी और ऐसा लग रहा था कि वह अभी तक भूखा है कुछ नहीं खाया है। वह अपनी लाचार...

एक ख्वाहिश

जो संजोए हूँ वर्षों से, उसे खोना चाहता हूँ, इन 'आवाजो' से खाली मैं होना चाहता हूँ, थक गया हूँ अब इन भावों को ढोते- ढोते, अब हवाओं में खुलकर मैं रोना चाहता हूँ।। कर दिया हूँ अलग सुख और दुख को बहुत, फिर  इनको एक साथ, पिरोना चाहता हूँ । खुलके हंसता हूँ खुशियों में मैं जिस तरह, कष्ट में भी उस तरह , मैं रोना चाहता हूँ।। अरसों हो गए हैं मुझको तो सोए हुए, उन्मुक्त नींद ही अब, मैं सोना चाहता हूँ। बस तलाश जारी है उपयुक्त बिछौने की, उस तकिए के सहारे, मैं रोना चाहता हूँ।। दिल तो भीगा हुआ है आँसुओं से मगर, अब पलकों को भी , भिगोना चाहता हूँ। थक गया हूँ नाटक में यूं चलते चलते, एक ही है ख्वाहिश, मैं रोना चाहता हूँ।।                    - Pankaj Nayan Gautam

दोहे : परीक्षा की तैयारी

-लेना शुरू कर दीजिए, अपने प्रभु का नाम । पेपर शुरू अब हो गए, आयेंगे वे काम ।१। आओ मेरे साथियों, हो जाओ तैयार । पुस्तक को कवच बनाइए, कलम बने हथियार ।२। चौबीस घंटे का सिस्टम, सोच लिया अब जाय । जो भी बुक नहि पास में, उन्हें खरीदा जाय ।३। पहले दिन की उत्सुकता,पूरा दिन लिए सोय । यही सोचकर रात में, अधिक पढ़ाई होय ।४। पूरे दिन अपने अंदर,समझाते यह बात । दो नींद के होते ही, आय गई वो रात ।५। तीस मिनट तो प्रेम से, लिये पेज पलटाय । बोला 'अंदर' से कोई, अब चाय हो जाय ।६। फिर आते हैं मुद्दे पर, लिए किताब को खोल । तब मोबाइल उछल पड़ा, मुझसे भी कुछ  बोल ।७। फेसबुक ट्विटर एप्प्स फिर, व्हाट्सएप इंस्टाग्राम । इनमें दिल फिर रम गया, भूले अपना काम ।८। कल से पक्का पढ़ लेंगे, लिये यही फिर ठान । तान रजाई सो गये,ठीक समय को जान ।९। समय और हम खेलते, रोज यही अब खेल । कल पेपर से सामना, और हमारा मेल ।१०।                      -   पंकज नयन गौतम